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अन्नपूर्णा देवी को केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री का पद मिलने पर झारखंड बीजेपी में खुशी

अन्नपूर्णा देवी को केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री का पद मिलने पर झारखंड बीजेपी में खुशी है. उत्साह इतना कि खुशी को 4 दिन तक मनाया गया. अभिनंदन और यात्रा का ऐसा पर्व बीजेपी ने पहले किसी के राज्यमंत्री तो छोड़िये कैबिनेट मंत्री बनने पर नहीं मनाया. जनता भी यह सब देखकर हैरान है. उसके मन में कई सवाल हैं. केंद्र से राज्य में विकास योजनाएं लाने वाले यशवंत सिन्हा और अर्जुन मुंडा का ऐसा स्वागत क्यों नहीं. आखिर अन्नपूर्णा का ही अभिनंदन क्यों. आखिर उन्होंने ऐसा क्या करिश्मा कर दिया. याद दिला दें कि पिछले 20 साल में केंद्र में राज्य के दर्जनों नेता मंत्री बनाए गये. महत्वपूर्ण पदों को संभाला, लेकिन उन्होंने कैबिनेट मंत्री रहते राज्य के लिए एक भी काम नहीं किया. अपने मंत्रालय से एक तोहफा तक नहीं दिया. केंद्र में जाने के बाद जिस राज्य के नेता अपने प्रदेश के लिए कुछ नहीं कर पाते वहां की एक राज्यमंत्री के लिए बीजेपी की ओर से ऐसा जुलूस निकालना जनता के साथ मजाक नहीं तो और क्या है.

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बाबूलाल मरांडी, रामेश्वर उरांव, सुबोधकांत सहाय, सुदर्शन भगत, जयंत सिन्हा, शिबू सोरेन, कड़िया मुंडा और मुख्तार अब्बास नकवी समेत कई नेता झारखंड से लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बने, लेकिन इनका एक भी उल्लेखनीय काम रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. आधी जनता को तो यह भी पता नहीं चल पाया कि केंद्र में उनके राज्य का कोई सांसद मंत्री भी बना है. मुख्तार अब्बास नकवी 2016 के बाद झारखंड में दिखे तक नहीं. बाकी मंत्रियों ने अपने मंत्रालय से न तो राज्य को और न अपने संसदीय क्षेत्र को कुछ दिया. बस सांसद फंड की राशि से अपने लोकसभा में सड़क, नालियां और गलियां बनाया. जब बस सांसद फंड से ही काम करना था तो केंद्र में मंत्री बनने की क्या जरूरत थी.

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सुबोधकांत सहाय सबसे ज्यादा समय तक केंद्र में मंत्री रहने वाले नेता हैं. 1990 में केंद्रीय गृह मंत्रालय संभालने के बाद 1991 में सूचना प्रसारण मंत्रालय भी संभाला. फिर 2006 से 2011 तक केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण और पर्यटन विभाग के मंत्री रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में राज्य का एक भी पर्यटन स्थल विकसित नहीं हुआ. हां खाद्य प्रसंस्करण मंत्री के तौर पर उन्होंने गेलतसूद में मेगा फूड पार्क दिया, लेकिन 117.96 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी यह पार्क डेड एसेट बना हुआ है. 2009 में सुबोधकांत ने इसकी आधारशिला रखी थी. 7 साल बाद परियोजना कंप्लीट हुआ, लेकिन खामियों के कारण आखिरकार 2019 में इसे केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय को रद्द करना पड़ा.

लोहरदगा से सांसद सुदर्शन भगत 2014 में मोदी कैबिनेट में मंत्री बने. 5 साल में उन्हें तीन विभाग दिया गया. पहले साल वे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रहे. इसके बाद 2 साल ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री रहे. फिर 2017 से 19 तक वे कृषि राज्यमंत्री रहे. 5 साल में न तो कृषि और न ही ग्रामीण विकास की कोई भी बड़ी योजना राज्य को दी. सुदर्शन भगत से जब पूछा गया तो उन्होंने भी यही कहा कि मंत्री रहते विभाग की रूटीन योजनाएं ही राज्य को दी.

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मोदी कैबिनेट 1 में हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा भी शामिल किये गये थे. 2014 से 16 तक केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री रहे. उसके बाद उन्हें नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री बनाया गया. वित्त राज्यमंत्री रहते राज्य के लिए उनकी कोई उपलब्धि नहीं रही. 2016 में नागर विमान क्षेत्र से जुड़े विभिन्न व्यापारों से लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय और कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय में समझौता उनके कार्यकाल में हुए. इसके तहत 2026 तक 60 लाख नौकरियां पैदा करने का दावा था, यह दावा भी हवा-हवाई साबित हुआ. आजकल जयंत सिन्हा चौक-चौराहों में फूल लगाकर इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं.

झारखंड के मंत्री रामेश्वर उरांव भी केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. 2008 में मनमोहन सरकार में उन्हें आदिवासी मामलों का राज्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन राज्य तो छोड़िये अपने लोकसभा क्षेत्र के आदिवासियों की हालत सुधारने के लिए उन्होंने कोई योजना नहीं बनाई. दूसरे विभागों की योजनाओं को भी राज्य तक नहीं ला सके.

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी 1999 में अटल सरकार में कैबिनेट में शामिल किये गये थे. उन्हें वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री बनाया गया था. जबतक वे विभाग के काम समझते. उससे पहले उनसे इस्तीफा मांग लिया गया. फिर वे साल 2000 में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने.

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जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन को केंद्र में कोयला मंत्रालय मिला था. 2004 और 2006 में मनमोहन सरकार में वे केंद्रीय कोयला मंत्री रहे, लेकिन कोई बड़ी उपलब्धि उनके कार्यकाल में कोयला मंत्रालय हासिल नहीं कर सका.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और खूंटी के पूर्व सांसद कड़िया मुंडा भी लंबे समय तक केंद्रीय कैबिनेट में रहे हैं. पहली बार वे मोरारजी देसाई की सरकार में इस्पात मंत्री बनाये गये थे. इसके बाद साल 2003 से 04 तक वे केंद्रीय कृषि और ग्रामीण उद्योग विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे. एक साल में वे कृषि और उद्योग की एक भी बड़ी योजना राज्य में नहीं ला सके.

यशवंत सिन्हा हजारीबाग से चुनाव जीतकर सांसद बने थे. 1998 से 2004 तक वे केंद्र में मंत्री रहे. वित्त मंत्री और विदेश मंत्री के तौर पर वे देश काफी सफल रहे. केंद्र की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ थी. उनके कार्यकाल के दौरान सरकार को कई नीतिगत फैसलों को बदलना पड़ा था. उन्होंने वास्तविक ब्याज दरों में कमी की. ऋण भुगतान पर कर में छूट और दूरसंचार क्षेत्र को स्वतंत्र करने का काम उन्होंने ही किया. यशवंत सिन्हा ही पहले वित्त मंत्री थे जिन्होंने भारतीय बजट को स्थानीय समयानुसार शाम 5 बजे प्रस्तुत करने की 53 वर्ष पुरानी परंपरा को तोड़ा. हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के लोगों को उन्होंने रेल का तोहफा दिया. सालों से हजारीबाग के लोग रेल लाइन का इंतजार कर रहे थे. उनका सपना यशवंत ने पूरा किया.

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अर्जुन मुंडा को मोदी कैबिनेट-2 में जनजातीय मामलों का मंत्री बनाया गया. मंत्रालय संभालने के साथ ही उन्होंने पूरे देश को एकलव्य स्कूल का तोहफा दिया. पूरे देश में 452 एक्लव्य स्कूल की उन्होंने स्वीकृति दी. इनमें से सिर्फ 92 झारखंड में खुल रहे हैं. इन स्कूलों में 90 फीसदी आदिवासी और 10 फीसदी शिड्यूल कास्ट के बच्चे पढ़ेंगे.

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