IMG 20210528 WA0043

आज के युग में एक बंदर महावीर का भी होना चाहिए : आचार्य प्रसन्नसागर जी महाराज.

गिरीडीह : आज के युग में एक बंदर महावीर का भी होना चाहिए, यह कहना है आचार्य प्रसन्नसागर जी महाराज का। वे शुक्रवार को अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता साधना महोदधि देेश गौरव उभय मासोपासी आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज निमियाघाट के सहस्त्र वर्ष पुरानी भगवान पारसनाथ की वरदानी छांव तले विश्व हितांकर विघ्न हरण चिंतामणि पारसनाथ जिनेंद्र महा अर्चना महोत्सव पर भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समा आएगी ना सोना काम आएगा ना चांदी आएगी।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

कहा कि गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में तुमने सुना होगा गांधीजी के तीन बंदर जगजाहिर है गांधीजी सारे देश को तीन बंदरों के प्रतीक स्वरूप संदेश देकर गए हैं कि बुरा मत देखो बुरा मत सुनो,और बुरा मत कहो। यह तीन बंदर गांधीजी के हैं लेकिन भगवान महावीर ने इनमें एक बंदर और जोड़ा है, बुरा मत सोचो, मैं समझता हूं गांधी जी से एक भूल हो गई हो जाती है गांधी जी भी तो आखिर इंसान ही थे इंसान से भूल होना स्वभाविक है ऐसा तो कभी नहीं होता कि जिंदगी में कभी कोई गिरे ही ना जो चलते हैं वह गिरते भी हैं। जीवन में गिरते भी हैं उठते भी है हारते भी हैं जितने भी हैं लेकिन शान ना तो गिरने में है न हारने में है बल्कि शान गिरकर तुरंत उठ खड़े होने में है गलती होने पर उसे स्वीकार कर लेने और सुधार लेने में है।

आचार्य प्रसन्नसागर जी महाराज ने कहा कि गांधीजी के तीन बंदरों में एक बंदर को और जोड़ने की जरूरत है वहां एक बंदर ऐसा भी होना चाहिए जो अपने हृदय पर हाथ रखे हो और कह रहा हो कि बुरा मत सोचो बुरा मत सोचो यह महत्वपूर्ण संदेश है। आज इंसान कब सोच बिगड़ गया है हर समय वह दूसरों के विषय में अशुभ ही सोचता है, इससे दूसरों का अशुभ तो नहीं होता पर स्वयं का बुरा जरूर होता है। आदमी का बुरा देखना बुरा सुनना और बुरा कहना उसके बुरे सोचने पर टिका है। आदमी अपने विचारों और भावनाओं से दरिद्र हो गया है दूसरों के प्रति उधार विचार जीवन समृद्धि के प्रतीक होते हैं।

आज के परिवेश में चौथे बंदर का होना बहुत जरूरी हो गया है जो हमेशा सावधान रखें और कहे अपना चिंतन अपना सोच साफ सुथरा वह अच्छा रखें क्योंकि साफ सुथरा चिंतन ही जीवन को सुखी व स्वच्छ बनाता है। अपने चिंतन को शुभ बनाइए तो जीवन की चर्या आपोआप शुभ बन जाएगी कभी कोई कुविचार मन में उठे, तो तुरंत ओम बोलना ओम बोलते ही कुविचार खो जाएंगे यदि विचारों का व्यक्तित्व हो तो आंख बंद करके दीर्घ श्वास लेते हुए ओमकार का अनुगूंज करें तो बसना खत्म हो जाएगी। क्रोध का आवेश गिर जाएगा ओम बोलने से ऊर्जा उर्दगामी होने लगती है।

गिरिडीह, दिनेश

Share via
Send this to a friend